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FOOD PROCESSING INDUSTRIES

बेबीकॉर्न उत्पादन की नई तकनीक आयी सामने, कम समय में ज्यादा मुनाफा

बेबीकॉर्न उत्पादन की नई तकनीक आयी सामने, कम समय में ज्यादा मुनाफा

पिछले कुछ सालों से खाद्य प्रसंस्करण उद्योग विभाग (MINISTRY OF FOOD PROCESSING INDUSTRIES) के द्वारा भारत के किसानों को कई सलाह दी गई है, जिससे कि इस सेक्टर को सुदृढ़ किया जा सके और प्रगति के क्षेत्र में एक नई उपलब्धि हासिल की जा सके। इसी की तर्ज पर सब्जी और खाद्य उत्पादों के लिए कई बार नई एडवाइजरी भी जारी की जाती है।

बेबी कॉर्न की खेती के फायदे

मक्का या भुट्टा (Maize) की ही एक प्रजाति बेबीकॉर्न (Baby Corn) को जिसे शिशु मक्का भी कहा जाता है, को उगाकर भी भारत के किसान अच्छा खासा मुनाफा कमाने के साथ ही एक स्वादिष्ट और पोषकता युक्त उत्पाद को तैयार कर सकते है। 

बेबी कॉर्न एक स्वादिष्ट पोषक तत्व वाली सब्जी होती है जिसमें कार्बोहाइड्रेट,आयरन, वसा और कैल्शियम की कमी को पूरी करने की क्षमता होती है। कुछ किसान भाई घर पर ही बेबीकॉर्न की मदद से आचार,चटनी और सूप तैयार कर बाजार में भी बेचते है। 

पिछले 2 सालों में थाईलैंड और वियतनाम जैसे देशों ने भारत से सबसे ज्यादा बेबी कॉर्न की खरीददारी भी की है और आने वाले समय में भी इसकी डिमांड बढ़ती हुई नजर आ रही है। 

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बेबी कॉर्न की फसल का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसे भी बिल्कुल मक्का की तरह ही उगाया जाता है, परंतु साधारण मक्का की अपेक्षा 3 से 4 गुना तक अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। इसकी खेती का विकास बहुत तेजी से होता है।

युवा किसान बेबीकॉर्न के उत्पादन में काफी सफल साबित हुए है। बेबी कॉर्न हमारी उंगली के जैसे आकार का मक्के का एक भुट्टा होता है जिसमें 2 से 3 सेंटीमीटर सिल्क जैसे दिखाई देने वाले बाल निकले रहते है। 

भारत के खेतों में बेबी कॉर्न की लंबाई लगभग 6 से 10 सेंटीमीटर की होती है और अलग-अलग किस्म के अनुसार इसका उत्पादन कम या अधिक होता है। किसान भाई यह तो जानते ही है कि मक्का की खेती करने में बहुत समय लगता है, लेकिन बेबीकॉर्न एक अल्प अवधि वाली फसल होती है। 

इसके अलावा फसल को काटने के बाद प्राप्त हुए चारे को पशुओं के खाने में उपयोग लाया जा सकता है और उस चारे को काटने के बाद बची हुई जमीन को किसी दूसरी फसल के उत्पादन में उपयोग में लिया जा सकता है।

बेबी कॉर्न उगाने का समय

बेबी कॉर्न उत्पादन का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसे पूरे साल भर उगाया जा सकता है। आप इसे रबी या खरीफ दोनों ही प्रकार के मौसम में उगा सकते है और शहरी क्षेत्र के आसपास में उगाए जाने के लिए उचित जलवायु भी मिलती है। 

बेबी कॉर्न की खेती का समय अलग-अलग क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग होता है। दक्षिण भारत में तो इसे पूरे वर्ष लगाया जा सकता है, लेकिन उत्तर भारत में जलवायु की वजह से इसका उत्पादन फरवरी से नवंबर के बीच में बुवाई के बाद किया जाता है। 

इसके उत्पादन के लिए आपको नर्सरी पहले ही तैयार करनी होगी, जिसे अगस्त से नवंबर के बीच में तैयार किया जा सकता है। इस समय में तैयार की हुई नर्सरी सर्वोत्तम किस्म की होती है और उत्पादन देने में भी प्रभावी साबित होती है। 

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बेबी कॉर्न की खेती के लिए उपयुक्त मिटटी व जलवायु

मक्का की खेती के लिए सभी प्रकार की मिट्टी उपयोग में लाई जा सकती है। लेकिन दोमट मिट्टी को सर्वोत्तम मिट्टी माना जाता है, जिसमें यदि आर्गेनिक उर्वरक पहले से ही मिले हुए हो तो यह और भी अच्छी मानी जाती है। 

किसान भाइयों को अपनी मिट्टी की PH की जांच करवानी चाहिए, क्योंकि यदि आपके खेत की PH लगभग 7 के आसपास होती है तो बेबीकॉर्न उत्पादन सर्वाधिक हो सकता है। 

हल्की गर्म और नमी वाली जलवायु इस फसल के उत्पादन के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है, लेकिन कृषि वैज्ञानिकों की मदद से तैयार की हुई कुछ संकर किस्में वर्ष में तीन से चार बार उगाई जा सकती है और इन्हें ग्रीष्म काल या फिर वर्षा काल में भी उत्पादित किया जा सकता है। 

बेबी कॉर्न की बुवाई के लिए खेत की तैयारी व किस्मों का चयन

बेबी कॉर्न की खेती के लिए बुवाई से 15 से 20 दिन पहले गोबर की खाद का इस्तेमाल करे और पूरे खेत में उर्वरक के रूप में बिखेर देना चाहिए। कम अवधि और मध्यम ऊंचाई वाली संकर किस्म का चयन कर जल्दी परिपक्व होने वाली फसल का उत्पादन किया जा सकता है।

किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि संकर किस्म के चुनाव के समय, अधिक फल देने वाली किस्में और उर्वरक की अधिक खुराक के प्रति सक्रियता तथा बांझपन ना होना जैसी विशेषता वाली किस्म को ही चुनें। वर्तमान में बेबी कॉर्न की कुछ हाइब्रिड उन्नत किस्में जैसे कि HIM-123, VL-42 और VL-मक्का-16 के साथ ही, माधुरी जैसी किस्मों का ही चुनाव करना होगा। 

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बेबी कॉर्न की बुवाई के लिए बीजोपचार व बीज दर

यदि आप अपने खेत में बीज को बोन से पहले उसका उपचार कर ले तो इसे कवकनाशी और कीटनाशकों से पूरी तरीके से मुक्ति मिल सकती है। बीजोपचार के दौरान दीमक से बचने के लिए फिप्रोलीन को 4 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज की दर से इस्तेमाल कर अच्छे से मिलाना चाहिए। 

यदि बात करें बीज की मात्रा की तो प्रति हेक्टेयर एरिया में लगभग 30 से 40 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है और इस बीज की बुवाई वर्ष में मार्च-अप्रैल, जून-जुलाई जैसे माह में की जा सकती है। 

यदि आप दिल्ली के आसपास के क्षेत्र में रहते हैं, तो बेबीकॉर्न की पंक्तियों की दूरी 40 सेंटीमीटर रखें और दो पौधे के बीच की दूरी लगभग 20 सेंटीमीटर रखनी चाहिए, दूरी कम रखने का फायदा यह होता है कि बीच में जगह खाली नहीं रहती है, क्योंकि इसके पौधे आकार में बड़े नहीं होते हैं।

बेबी कॉर्न की खेती में खाद अनुपात

गोबर की खाद का इस्तेमाल 10 से 12 टन प्रति हेक्टेयर की दर से किया जा सकता है। इसके अलावा 60 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर दर से इस्तेमाल करने से अच्छी उपज की संभावनाएं बढ़ जाती है।

यदि आप के खेत में नाइट्रोजन की कमी है तो 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से यूरिया का भी उर्वरक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

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बेबी कॉर्न की खेती में खर पतवार नियंत्रण

खरपतवार को रोकने के लिए पहले दो से तीन बार खुरफी से निराई करनी चाहिए, साथ ही इस खरपतवार को हटाते समय पौधे पर हल्की हल्की मिट्टी की परत चढ़ा देनी चाहिए जिससे कि अधिक हवा चलने पर पौधे नीचे टूटकर ना गिरे। कुछ खरपतवार नाशी जैसे कि एट्रेजिन का इस्तेमाल भी बीज बोने के 2 दिन के भीतर ही करना चाहिए। 

बेबी कॉर्न सिंचाई प्रबंधन

किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि बेबीकॉर्न फसल उत्पादन के दौरान जल प्रबंधन सिंचाई का भी ध्यान रखना होगा, इसीलिए पानी को मेड़ के ऊपर नहीं आने देना चाहिए और नालियों में पानी भरते समय दो तिहाई ऊंचाई तक ही पानी देना चाहिए। 

फसल की मांग के अनुसार वर्षा और मिट्टी में नमी रोकने के लिए समय-समय पर सिंचाई पर निगरानी रखनी होगी। 

यदि आप का पौधा युवावस्था में है और उसकी ऊंचाई घुटने तक आ गई है तो उसे पाले से बचाने के लिए मिट्टी को गिला रखना भी बहुत जरूरी है। 

बेबी कॉर्न कीट नियंत्रण

बेबी कॉर्न जैसी फसल में कई प्रकार के कीट लगने की संभावना होती है, इनमें तना भेदक, गुलाबी तना मक्खी जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती है, इनकी रोकथाम के लिए कार्बेनिल का छिड़काव जरूर करना चाहिए। 

वैसे तो कम अवधि की फसल होने की वजह से इसमें अधिक बीमारियां नहीं लगती है फिर भी इन से बचने के लिए टिट्रीकम जैसे फर्टिलाइजर का इस्तेमाल किया जा सकता है।

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बेबी कॉर्न की तुड़ाई

जब बेबीकॉर्न के पौधे से रेशमी कोंपल निकलना शुरू हो जाए तो दो से तीन दिन के भीतर ही सावधानी पूर्वक हाथों से ही इसे तोड़ना चाहिए, इस प्रकार आप के खेत में तैयार बेबी कॉर्न की फसल को प्रति हेक्टेयर की दर से 4 से 5 दिन में तोड़ा जा सकता है। 

आशा करते हैं कि हमारे किसान भाई Merikheti.com के माध्यम से दी गई जानकारी से पुर्णतया सन्तुष्ट होंगे और अपने खेत में कम समय में पक कर तैयार होने वाली इस फसल का उत्पादन कर अच्छा खासा मुनाफा कर पाएंगे।

ऑपरेशन ग्रीन से हो जाएगा टमाटर का दाम दोगुना, अब किसान सड़कों पर नहीं फेकेंगे टमाटर

ऑपरेशन ग्रीन से हो जाएगा टमाटर का दाम दोगुना, अब किसान सड़कों पर नहीं फेकेंगे टमाटर

टमाटर की कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव होने के कारण किसानों को उनकी उपज का सही भी भाव नहीं मिल पाता है। जिसके कारण किसान टमाटर को नष्ट करने पर मजबूर हो जाते है। इसके समाधान के लिए आंध्र प्रदेश सरकार ने ऑपरेशन ग्रीन चलाया है। ऑपरेशन ग्रीन्स के माध्यम से किसानों को उनके ऊपज का उचित दाम दिलवाना है सरकार का मुख्य उद्देश्य है। इस प्रोग्राम के अंतर्गत लोरेंस डेल एग्रो प्रॉसेसिंग इंडिया (LEAF) की सेवाओं को सूचीबद्ध किया गया है। जिससे टमाटर उगाने वाले किसानों को उचित मूल्य प्राप्त हो पाएगा। भारत में आजकल किसानों के द्वारा सब्जी फसलों की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है। इस साल की आंकड़ों की बात करें, तो सब्जियों का उत्पादन पहले से बहुत ज्यादा बढ़ा है, निर्यात में भी काफी बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। लेकिन कभी-कभी सब्जियों के बाजार भाव में उतार-चढ़ाव के कारण किसानों को नुकसान का सामना भी करना पड़ता है। उचित दाम न मिलने के कारण किसान अपनी फसलों को नष्ट करने लगते हैं। ऐसे में किसान मजबूर होकर अपने अपने उपजाए हुए फसल को सड़क के किनारे फेंक देते हैं।


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किसानों को इस समस्या से उबरने के लिए आंध्र प्रदेश सरकार ने ऑपरेशन ग्रीन चलाने की योजना बनाई है। आइए जानते हैं, क्या है ऑपरेशन ग्रीन्स इस प्रोग्राम के अंतर्गत लोरेंसडेल एग्रो प्रॉसेसिंग इंडिया (LEAF) की सेवाओं को सूचीबद्ध किया गया है। इस योजना के अंतर्गत चितुर,अनंतपुर और वाईएसआर कडप्पा के टमाटर खेती वाले इलाकों में टमाटर एकत्रित करके मूल्य श्रृंखला विकसित करना है। इस प्रोग्राम में कृषि सेक्टर से जुड़े अनेक हित धारकों को जोड़ना है। जो मेन्यूफैक्चरिंग सेक्टर से लेकर उपभोग स्थलों की पूरी चयन पर नजर रखेंगे सबसे अच्छी बात यह है, कि श्रृंखला विकसित करने के लिए आंध्र प्रदेश खाद्य प्रसंस्करण सोसाइटी का पूरा सहयोग किसानों को मिलेगा। जब किसानों को बाजार में उनके उपज का सही भाव नहीं मिलता है, तो सरकार के द्वारा किसानों को भंडारण या प्रोसेसिंग करने की सलाह दी जाती है। देश-विदेश में फूड प्रोसेसिंग की बढ़ती डिमांड के चलते प्रोसेसिंग बिजनेस किसानों के लिए बड़ा ही महत्वपूर्ण साबित हो रहा है। इसी आधार पर आंध्र प्रदेश सरकार किसानों का सहयोग करने के लिए आगे आ रही है। आंध्र प्रदेश सरकार के द्वारा टमाटर की मार्केटिंग से लेकर प्रोसेसिंग तक की व्यवस्था की जा रही है। जिसमें बहुत सारे ऑर्गेनाइजेशन का सपोर्ट आंध्र प्रदेश सरकार को मिल रहा है।


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एक्सपोर्ट की बात करें, तो लॉरेंस दिल एग्रो प्रोसेसिंग इंडिया के साथ आंध्र प्रदेश सरकार का जो समझौता हुआ है। उससे किसानों को उनके फसल का सही दाम दिलवाने में मददगार साबित होगा। इतना ही नहीं इस योजना के वित्तपोषण तक पहुंच बनाने के लिए खुद एपीएफपीएस राज्य और केंद्र सरकार के संपर्क में है। लॉरेंस डेल एग्रो प्रोसेसिंग इंडिया के संस्थापक और सीईओ पलट विजय राघवन ने मीडिया से बात करते हुए कहा है, कि ऑपरेशन ग्रीन्स का उद्देश सीमांत किसानों को पूर्वानुमान प्रदान कराना है। इस तरह की योजना के लागू होने से किसानों को नुकसान का सामना नहीं करना पड़ेगा और उन्हें अच्छी आमदनी भी मिलेगी।